घर में विवाह का उत्सव पर निबंध | Essay on Marriage Ceremony in Hindi

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घर में विवाह का उत्सव पर निबंध | Essay on Marriage Ceremony in Hindi!

घर में वैवाहिक कार्यक्रम का आयोजन खुशियाँ लेकर आता है । घर के सदस्य ही नहीं, आस-पड़ोस के लोग और रिश्तेदार भी खुश होते हैं । विवाह से पूर्व ही घर में उत्सव होने लगता है । घर के सदस्यों की व्यस्तता बढ़ जाती है । विवाह की तैयारियों में वे उत्साह के साथ भाग लेते हैं ।

मेरे बड़े भाई साहब का शुभ विवाह पिछले वर्ष संपन्न हुआ । भाई साहब की अच्छी कंपनी में नौकरी लगी तो पिताजी ने उनका विवाह एक पड़ी-लिखी, गुणवान और सुंदर लड़की से तय कर दिया । विवाह की तारीख 6 जून निश्चित की गई । अभी एक महीने का समय था । नियमानुसार पहले सगाई का मुहूर्त निकाला गया । घर में चहल-पहल शुरू हो गई । निकट के संबंधियों का जमावड़ा आरंभ हुआ । नियत तिथि को लड़की तथा उसके घर वाले पधारे । लड़के-लड़की ने मंत्रोच्चार के बीच एक-दूसरे को अंगूठी पहनाई । फिर खाना-पीना हुआ और मेहमान विदा हो गए ।

लेकिन अभी बड़ा उत्सव होना शेष था । माँ, बुआ और दादी ने गहनों को पसंद किया और बनाने का ऑर्डर दे दिया । हरेक के लिए नए कपड़े खरीदे जाने लगे । ढेर सारी साड़ियाँ, धोतियाँ और सूट-पैंट के कपड़े खरीदने की प्रक्रिया चल पड़ी । मैंने भी भैया की शादी में अपनी पसंद के दो जोड़े सिलवाए । दुल्हन के लिए महँगी साड़ियाँ खरीदी गई । दूल्हा भी कम न दिखे इसलिए उनके लिए भी आकर्षक सूट सिलवाए गए । वर और वधू पक्ष के विशिष्ट लोगों के लिए कपड़ों की खरीदारी की गई । पिताजी ने आकर्षक निमंत्रण-पत्र छपवाकर बाँटा ।

मिठाइयों की तो इस दौरान कोई कमी न थी । घर पर हलवाई को बुलाकर मिठाइयाँ तैयार कराई गई थीं । लड़की वालों ने भी शगुन में मिठाइयों भेजी थीं । जो भी मेहमान आते टोकरियों में रसगुल्ले और बर्फी बँधवाकर लाते । मेरी तो बहुत मौज थी । उस समय मिठाइयाँ माँगकर खाने की कोई आवश्यकता नहीं थी बिना माँगे ही मिल जाती थीं ।

ज्यों-ज्यों विवाह की तिथि निकट आई, घर में हलचल बढ़ने लगी । ताऊ, चाचा, नाना, मामा, मामी, बहन, बुआ, मौसा, मौसी सब आ गए । पिताजी और मैंने अपने- अपने मित्रों को आमंत्रित किया था । घर छोटा पड़ गया तो शामियाना तान लिया गया । बाजार से किराए की कुर्सियाँ और मेजें मँगवा ली गई । खाना हलवाई पकाने लगा । दूल्हे राजा को विवाह से पूर्व कई रस्मों-रिवाजों से गुजरना पड़ा ।

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आखिर वह दिन आ गया जिसका सबको इंतजार था । मैंने स्कूल से पाँच दिनों की छुट्‌टी ले ली थी । सुबह से ही गहमागहमी शुरू हो गई । घर के सदस्य, रिश्तेदार और पास-पड़ोस के लोग बारात में चलने की तैयारी कर रहे थे । दरवाजे पर एक कोच बस और कुछ कारें खड़ी थीं । दूल्हे वाली कार को अच्छी तरह सजाया गया था । बारात अपराह्‌न चार बजे प्रस्थान कर गई । दो घंटे की यात्रा के बाद बारात लड़की वालों के घर पहुँच गई ।

वधू पक्ष के लोगों ने बारातियों का गर्मजोशी से स्वागत किया । संबंधी आपस में गले मिले, दूल्हे का विशेष सत्कार हुआ । दूल्हे के लिए घोड़ी तैयार थी । दूल्हा सजी हुई घोड़ी पर सेहरा बाँध कर बैठा और पीछे बारात नाचते-गाते चली । बैंडवाले फिल्मी धुनें बजा रहे थे और लोग नाच रहे थे । कुछ लोग रुपये लुटा रहे थे तो कुछ आतिशबाजियाँ चला रहे थे ।

इधर वैवाहिक कार्यक्रम आरंभ हुआ, उधर बारातियों की पार्टी शुरू हुई । सबने नाश्ता किया और फिर भोजन किया । बारातियों को ठहराने की अच्छी व्यवस्था की गई थी । सभी विश्राम करने लगे । मंत्रोच्चार के बीच सजे हुए मंडप में विवाह संपन्न हुआ । वर-वधू ने अग्नि के सात फेरे लिए । विवाह संपन्न होते-होते सवेरा हो गया । अब विदाई की बेला थी । वधू पक्ष के लोगों ने बारातियों के साथ अपनी कन्या को गमगीन नेत्रों से विदा कर दिया ।

हम लोग वापस घर आ गए । भाभी के आने से घर में विशेष रौनक आ गई । अगले दिन प्रीतिभोज दिया गया । भोज में लगभग तीन सौ लोगों ने भाग लिया और वर-वधू को आशीर्वाद दिया । अगले दिन से घर आए मेहमानों की विदाई होने लगी । मैंने तथा

मेरे मित्रों ने घर में वैवाहिक उत्सव का पूरा आनंद उठाया । उत्सव की समाप्ति पर हमारे दैनिक कार्यक्रम पुन: आरंभ हो गए ।

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Hindi Essay on "Hindu Marriage", "हिंदू विवाह पर निबंध" for Students

Essay on Hindu Marriage in Hindi : इस लेख में पढ़िए हिन्दू विवाह पर निबंध जिसमें हिन्दू विवाह के उद्देश्य, प्रकार, मान्यताएं तथा हिन्दू विवाह के उद्देश

हिंदू विवाह पर निबंध / Essay On Hindu Marriage in hindi

प्रस्तावना :   जब हम विवाह पर विचार करते हैं तो पाते हैं कि विवाह दो विषमलिंगियों को यौन सम्बन्ध स्थापित करने की सामाजिक या कानूनी स्वीकृति प्रदान करता है। विवाह ही परिवार की आधारशिला है और परिवार में ही बच्चों का समाजीकरण एवं पालन-पोषण होता है। समाज की निरन्तरता विवाह एवं परिवार से ही सम्भव है। यह नातेदारी का भी आधार है। विवाह के कारण कई नातेदारी सम्बन्ध पनपते हैं। विवाह आर्थिक हितों की रक्षा एवं भरण-पोषण के लिए भी आवश्यक है। विवाह संस्था व्यक्ति को शारीरिक, सामाजिक एवं मानसिक सुरक्षा प्रदान करती है।

1. प्रजा अथवा पुत्र प्राप्ति -  विवाह का प्रथम कार्य सन्तानोत्पत्ति माना गया है। हिन्दुओं में पुत्र का विशेष स्थान है, वही पिता के लिए तर्पण और पिण्डदान करता है, उसे मोक्ष दिलाता है। पितृ-ऋण से मुक्ति पाने के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति विवाह करके सन्तानों को जन्म दे। सन्तान उत्पन्न होने पर ही वंश एवं समाज की निरन्तरता बनी रहती है।

2. रति आनन्द - विवाह का महत्वपूर्ण कार्य यौन सन्तुष्टि है। उपनिषदों में यौन सुख को सबसे बड़ा सुख कहा गया है। वात्स्यायन ने रति आनन्द की तुलना ब्रह्मानंद से की है। इस प्रकार धर्मशास्त्रों में यौन इच्छाओं की पूर्ति को आवश्यक माना गया है, किन्तु वह मनमाने ढंग से नहीं वरन् समाज द्वारा स्वीकृत तरीकों से होनी चाहिये।

3. धर्म या धार्मिक कार्यों की पूर्ति -  विवाह के महत्वपूर्ण कार्यों में धर्म एवं धार्मिक कार्यों की पूर्ति को सर्वोपरि स्थान दिया गया है। प्रत्येक गृहस्थ से यह आशा की जाती है कि वह प्रतिदिन ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, भूतयज्ञ, पितृयज्ञ एवं नृयज्ञ आदि पाँच महायज्ञ करे। यज्ञ में पति और पत्नी दोनों का होना आवश्यक है और ऐसा विवाह द्वारा ही सम्भव है।

4. व्यक्तित्व का विकास -  स्त्री और पुरुष के व्यक्तित्व के विकास के लिए विवाह आवश्यक है। विवाह के द्वारा व्यक्ति समाज में अनेक नवीन पद एवं भूमिकाएं ग्रहण करता है। मनु कहते हैं कि मनुष्य अपूर्ण है जिसे विवाह ही पूर्णता प्रदान करता है। इस प्रकार विवाह व्यक्तित्व के विकास एवं संगठन की दृष्टि से आवश्यक है।

5. परिवार के प्रति दायित्वों का निर्वाह -  विवाह के द्वारा व्यक्ति अपने पारिवारिक ऋण एवं दायित्वों का निर्वाह करता है। जिन माता-पिता ने उसे जन्म दिया, लालन-पालन कर बड़ा किया, शिक्षा प्रदान की व समाज में रहने योग्य प्राणी बनाया, उनकी वृद्धावस्था, बीमारी एवं संकट के समय सेवा-सुश्रूषा करना व्यक्ति का कर्तव्य है जिनकी पूर्ति विवाह द्वारा ही सम्भव है।

निष्कर्ष :   इस प्रकार विवाह धार्मिक कार्यों की पूर्ति, पुत्र प्राप्ति, रति आनन्द, ऋणों से मुक्ति पुरुषार्थों की पूर्ति, स्त्री-पुरुष के व्यक्तित्व का विकास, परिवार, समाज एवं समुदाय की निरन्तरता एवं उनके प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह आदि कार्यों को सम्पन्न करते हुए अपनी महत्ता को बनाये रखे है।

हिंदू विवाह पर निबंध - Hindu Vivah Par Nibandh

हिंदू विवाह पर निबंध : हिंदुओं में विवाह एक पवित्र धार्मिक कार्य होता है। हर हिंदू के लिए विवाह आवश्यक होता है क्योंकि इसके बगैर हिंदू पुरुष ग्रहस्थाश्रम में प्रवेश नहीं कर सकता है। प्राचीन धर्मशास्त्रीय विद्वानों ने जो चार जीवन चरण (आश्रम) नियत किए थे उनमें से वह दूसरा है। विवाह की आवश्यकता एक-दूसरे कारण से भी होती है। जन्म, मृत्य और पुनर्जन्म के बंधन के छुटकारा पाने के लिए ही संतान और खासकर पुत्र की प्राप्ति आवश्यक होती है। यह अवधारणा हिंदुओं में प्रचलित आत्मा की अनश्वरता और पुनर्जन्म के विचार पर आधारित है। 

हिंदू धर्मशास्त्रियों ने विवाह को संस्कारों में से एक माना है। दूसरे शब्दों में यह उन पावनकारी अनुष्ठानों में से एक है जो हर हिंदू के लिए जरूरी है। इसके अंतर्गत जो विधि-विधान होते हैं उनका उद्देश्य किसी व्यक्ति को विभिन्न सीमाओं, त्रुटियों और कमजोरियों से मुक्त कराना है जो मानवकाया के रक्त-माँस-मज्जा में फैले होते हैं। कोई व्यक्ति इन सीमाओं या त्रुटियों से पलायन नहीं कर सकता। जहाँ तब सम्भव हो हम इन खामियों से ऊपर उठने की चेष्टा कर सकते हैं या ऐसा हमें ही करना चाहिए। संस्कारों या इन विधि-विधानों का निष्पादन इन उद्देश्य की पूर्ति करता है। हिंदू विधि वेत्ता मनु ने संस्कार के उद्देश्य को इन शब्दों में प्रकट किया है: ब्रह्मयम् क्रियनते तनुः। तात्पर्य यह कि हर व्यक्ति को अपने शरीर, मस्तिष्क और आत्मा को इस तरह शुद्ध रखना चाहिए कि अनुराग और अलगाव, सुखभोग और त्याग, आत्माभिव्यक्ति और आत्मोत्सर्ग किसी व्यक्ति के जीवन में संतुलित रूप से घुल-मिल जाएँ और जीवनमरण के बंधन से स्वयं को स्वतंत्र करने में उसे सक्षम बना दें। विवाह एक संस्कार है क्योंकि नवविवाहित जोड़े को वैवाहिक बंधन का प्रयोग करने का परामर्श दिया जाता है ताकि देह और काम-वासना के बंधन तोड़े जा सकें। 

अतः यह आश्चर्यजनक नहीं है कि विवाह की हिंदू-अवधारणा के पीछे एक धार्मिक अनुशक्ति (सैंक्शन) की पृष्ठभूमि होती है। विवाह संस्कार के अंतर्गत अनेक अनुष्ठानों और यज्ञ-याजनों का निष्पादन होता है। 'कन्यादान' या वधू के पिता द्वारा वर को अपने पुत्री का दान, आहुति की अग्नि को दैवी साक्षी और संस्कार को पवित्र करने वाली अग्नि के रूप में प्रज्वलित करना (विवान-होम), वर द्वारा वधू के हाथों को थामना (पाणिग्रहण) और आहुति की अग्नि के चारों ओर वर और वधू द्वारा सात फेरे लगाना, वर का वधू से आगे-आगे चलना (सप्तपदी) आदि विवाह से संबंधित महत्त्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान हैं। इन सबकी समाप्ति के बाद दुल्हा दुल्हन को लेकर चला जाता है। संस्कृत शब्द 'विवाह' का अर्थ है लेकर चले जाना। 

विवाह अपनी ही जाति में (वर्ण) में होना अनिवार्य है। पर व्यवहार में यह अपनी उपजाति के भीतर होता है। अपने लिए वर या वधू खोजने के क्रम में हर किसी को अनिवार्य रूप से मातृपक्ष की पाँच पीढ़ियों (सपिण्ड) की सीमा से बाहर और पितृपक्ष की सात पीढ़ियों (गौत्र और प्रवर से इतर) से बाहर जाना होगा। 

हिंदू विधि-ग्रन्थों में अनेक प्रकार के विवाहों की चर्चा है। जब कोई पिता अच्छे चरित्र और विद्या वाले किसी व्यक्ति को अपनी पुत्री सौंप देता है तो इसे ब्रह्म विवाह कहते हैं। जिस व्यक्ति को पुत्री सौंपी जाती है वह अगर पुजारी या पुरोहित है तो इस तरह के विवाह को दैव कहते हैं। जब कोई संभावित जमाता लड़की के पिता से उपहारस्वरूप लड़की हासिल करने से पूर्व एक साँड या एक गाय सौगात के रूप में देता है तो इसे आर्ष विवाह कहते हैं। पर इस तरह का विवाह खरीदारी या क्रय द्वारा होने वाले विवाह से भिन्न है जिसे असुर विवाह कहते हैं। ब्राह्मणों और क्षत्रियों के संदर्भ असुर विवाह की निन्दा की गई है पर मनु ने वैश्यों और शूद्रों के संदर्भ में इसे अच्छा माना है। जब कोई पिता किसी व्यक्ति का अच्छी तरह से सम्मान करने के बाद उसे उपहार रूप में अपनी पुत्री दे देता है और विवाहित जोड़े को साथ-साथ धर्म का निर्वाह करने का उपदेश देता है तो इसे प्राजापत्य विवाह कहते हैं। पारस्परिक प्रेम और अनुबंध के आधार पर होने वाले विवाह को गंधर्व विवाह कहते हैं। अपहरण द्वारा विवाह राक्षस विवाह कहलाता है और इसे कानूनी तौर पर वैध माना जाता है। पर अगर कोई लड़की सोई हुई हो, नशे में हो या मानसिक रूप से असंतुलित हो तो उसके साथ सहवास और विवाह को पैशाच विवाह कहते हैं। सभ्य-जीवन के तौर-तरीकों के उल्लंघन के कारण इसकी तीव्र भर्त्सना की गई है। 

हिंदू विधि वेत्ताओं ने विभिन्न प्रकार के विवाहों को मान्यता देकर अनेक जटिल सामाजिक समस्याओं का समाधान ढूँढ़ने की चेष्टा की है। अतीत में उत्तर-पश्चिम की ओर से भारत पर अनेक आक्रमण हुए हैं। देश के भीतर भी गैर-आर्यों की एक बहुत बड़ी संख्या दृष्टिगोचर हुई है। जिनके साथ आर्यों का संपर्क रहा है। एक के बाद एक आप्रवासी और स्थानीय गैर आर्यों के समूहों के कारण अनैतिक यौन-संबंध के मामले भी सामने आए और परिणामस्वरूप अविवाहित स्त्रियों के बच्चे हो गए। बड़ी तादाद में अवैध बच्चों की उपस्थिति के कारण जो समस्याएँ उठ खड़ी हुई उनका समाधान अपहरण, पलायन आदि को विवाह के कुछ रूपों के रूप में मान्यता देने से ही संभव हो सका यद्यपि इस तरह के विवाहों को वांछित नहीं माना जाता था। इस पक्ष पर टिप्पणी करते हुए ए.एल. बाशम कहते हैं: "बड़े आश्चर्यजनक ढंग से संबंधों के एक व्यापक दायरे को मान्यता दी गई ताकि अपने प्रेमी द्वारा शील-भंग की शिकार या बाहरी उठाईगीरों द्वारा जबरन ले जाई गई लड़की को पत्नी का वैधानिक अधिकार मिल सके और उसके बच्चे को नाजायज होने का दुख नहीं भोगना पड़े"। 

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शादी का क्या मतलब है?

शादी क्या है, इसका क्या मतलब है, क्या ये ज़रूरी है, शादीशुदा ज़िंदगी कैसी होनी चाहिये? यहाँ सदगुरु समझा रहे हैं कि शादी कोई सामाजिक नुस्खा नहीं है बल्कि ये हर व्यक्ति की ज़रूरतों के हिसाब से और उसकी पसंद की बात होनी चाहिये। साथ साथ रहने के संबंध, तलाक और शादी की प्रक्रिया कैसी हो, इन मुद्दों पर भी सदगुरु यहाँ अपने विचार रख रहे हैं।

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शादी क्या है?

दुनिया के कुछ खास हिस्सों में, बच्चों को जो आज़ादी  अभी मिल रही है, उसकी वजह से, शादी शब्द की शायद कुछ नकारात्मक छवि बन गयी है। कुछ समाजों में युवा लोग अब शादी को एक खराब चीज़ समझते हैं। आप जब युवा हैं तो आप इसके खिलाफ होते हैं क्योंकि आपका शरीर कुछ खास तरह का है। तब शादी एक तरह का बंधन जैसा लगता है जो आपको बांधता है। आप कुछ खास तरह से कुछ करना चाहते हैं। पर, धीरे धीरे, जब शरीर कमज़ोर पड़ता है तो फिर से आपको लगता है कोई ऐसा हो जो आपके लिये प्रतिबद्ध हो।

यह सोचना बहुत लड़कपन या अपरिपक्वता की बात है कि जब मैं मजबूत हूँ तब मुझे कोई नहीं चाहिये पर जब मैं कमज़ोर हो जाऊँ तो मुझे लगता है कि कोई मेरे साथ हो। वास्तव में कोई भागीदारी या संबंध तभी बनने चाहिये जब आप अपनी खुशहाली के शिखर पर हों। जब आप कमज़ोर हो जाते हैं तो घबराहट में किसी भी तरह से रिश्ते बनाना चाहेंगे। जब आप अच्छे हैं, अपने जीवन के शिखर पर हैं, तब आपको वो भागीदारी बनानी चाहिये जो  जीवन के उतार - चढ़ावों पर आपका साथ दे।

एक मनुष्य के रूप में आपकी शारीरिक , भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आर्थिक ज़रूरतें हैं। लोग इन चीजों के बारे में जागरूकता के साथ सोचना नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से उनका शादीशुदा जीवन खराब हो जायेगा। पर ये ज़रूरतें मौजूद हैं, और उनके बारे में विचार ज़रूर आते हैं।

स्त्रियों के लिये, कुछ हद तक, ये संसार बदल गया है। अब  सिर्फ सामाजिक और आर्थिक वजह से उनको शादी करना ज़रूरी नहीं रह गया है। उनके पास विकल्प हैं और अब वे अपना रास्ता चुन सकती हैं। वे अब अपनी सामाजिक और आर्थिक स्थितियों को संभाल सकती हैं। सौ साल पहले ऐसा नहीं था, अब उनके लिये कुछ आज़ादी है। उन्हें  शादी क्यों करनी चाहिये, इसके कम से कम दो कारण अब नहीं रहे हैं। बाकी के तीन के बारे में उनको सोचना है।

मानसिक रूप से क्या आपको अपने जीवन में किसी साथी की ज़रूरत है? क्या आपको भावनात्मक साथ चाहिये? और, अपनी शारीरिक ज़रूरतों के बारे में आप कितने मजबूत हैं? आपको, अपने व्यक्तिगत स्तर पर, इनके बारे में सोचना चाहिये। ये कोई सामाजिक नुस्खा नहीं है - हर कोई शादी करे या कोई भी शादी न करे! ये इस तरह काम नहीं करेगा। एक व्यक्ति के रूप में आपकी ज़रूरतें कितनी मजबूत हैं? क्या ये कुछ ऐसी चल जाने वाली ज़रूरत है, जिसके परे आप जा सकते हैं? अगर ऐसा है तो शादी मत करिये क्योंकि किसी से आसानी से, ऐसे ही, बंध जाने में कोई फायदा नहीं है। अगर आप फिर भी शादी करते हैं तो सिर्फ दो लोग ही नहीं, सारा परिवार परिणाम झेलता है। मैं ये नहीं कहता कि शादी करना गलत है पर सवाल ये है कि क्या आपको ये चाहिये? हर व्यक्ति को अपने लिये सोचना चाहिये, सिर्फ एक सामाजिक नियम मानकर शादी नहीं करनी चाहिये।

शादी करने में कुछ भी गलत नहीं है पर अगर ज़रूरत न होने के बावजूद आप ये करते हैं तो ये एक अपराध है क्योंकि आप अपने आपको और कम से कम एक और व्यक्ति को दुख ही देंगे। जब किसी ने गौतम बुद्ध से पूछा, "क्या मुझे कोई साथी रखना चाहिये"?, तो वे बोले, "किसी मूर्ख के साथ चलने की बजाय अकेले चलना बेहतर है"! मैं उतना निर्दयी नहीं हूँ। मैं तो ये कह रहा हूँ कि अगर आपको कोई अपने जैसा ही मूर्ख मिल जाता है तो कुछ किया जा सकता है, पर सिर्फ आपकी ज़रूरत के आधार पर न कि इसलिये कि समाज क्या कह रहा है, न ही इसलिये कि दूसरे लोग शादी कर रहे हैं।

शादी या साथ साथ रहना

मेरा ये मानना है कि कम से कम 25 से 30% लोगों को शादी करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि उनको इसमें बस थोड़ी सी ही रुचि होती है जो जल्दी ही खत्म हो जाती है। 30 से 40% लोगों के लिये ये थोड़ा ज्यादा चलती है और वे शादी कर सकते हैं। 10 से 12 साल तक उन्हें ये अच्छा लगता है, फिर बोझ लगने लगता है। पर, कुछ लोग ऐसे हैं जिनकी ज़रूरतें बहुत मजबूत होती हैं। लगभग 25 से 30% लोगों को ज्यादा लंबे समय की भागीदारी चाहिये - उनको ऐसी व्यवस्था में ज़रूर जाना चाहिये।

आजकल, लोगों ने कुछ दूसरी ही तरह के रास्ते ढूंढ लिये हैं। "ठीक है, मैं शादी नहीं करूँगा, बस उसके साथ रहूँगा"। अगर, आप बस एक ही व्यक्ति के साथ रह रहे हैं तो ये वैसे भी एक तरह से शादी ही है, आपके पास उसका सर्टिफिकेट चाहे हो या ना हो। पर, अगर आप सोचते हैं कि आप हर सप्ताहांत, कोई अलग साथी चुन सकते हैं तो आप अपने आपको गंभीर नुकसान पहुँचा रहे हैं क्योंकि जैसे आपके मन के पास याददाश्त है, वैसे ही आपके शरीर के पास भी, एक ज्यादा मजबूत तरह की याददाश्त है, आपके मन की याददाश्त से कहीं ज्यादा। शरीर की याददाश्त चीजें ग्रहण करती है और उन्हें बनाये रखती है।

शादी का महत्व

भारतीय परंपरा में शारीरिक नज़दीकियों को ऋणानुबंध कहते हैं, जो शरीर की भौतिक याददाश्त है। शारीरिक नज़दीकी के दौरान, शरीर याददाश्त की एक गहरी समझ बना लेता है। इस याददाश्त के आधार पर ये कई प्रकार से जवाब देता और प्रतिक्रिया करता है। अगर, कई लोगों के साथ संबंध बना कर आप इस पर बहुत सारी यादें छाप देते हैं तो शरीर उलझन में पड़ जाता है और आप में एक खास तरह का दुख पैदा होता है। आप ये उन लोगों में देख सकते हैं जो अपने जीवन और भौतिक शरीर को बहुत ही ढीले ढाले ढंग से चलाते हैं। उन्हें वास्तविक आनंद का कुछ पता नहीं चलता। अगर अपने आसपास ऐसे लोगों को देखें तो आप पायेंगे कि वे कभी पूरी तरह से न हँस सकते हैं, न रो सकते हैं। वे ऐसे इसलिये हो जाते हैं क्योंकि शरीर में एक ही जन्म में बहुत सारी उलझनभरी यादें कई तरह से असर करती हैं। तो, सिर्फ साथ साथ रहने का संबंध आपकी ज़रूरतों को संभालने का हल नहीं है।

या तो आप शादी कीजिये, या फिर इन ज़रूरतों के पार, पूरी तरह से, चले जाईये। पर, ये कुछ ऐसा है जो हरेक को अपने व्यक्तिगत स्तर पर देखना चाहिये - आपकी ज़रूरत कितनी मजबूत है? अगर आप इसे, बिना सामाजिक प्रभाव के, साफ तौर पर, स्पष्टता से देखना चाहें तो आप कुछ समय के लिये, जैसे एक महीने तक, बिल्कुल अलग हो जाईये। ये फैसला लेने के समय आपको स्पष्टता की अवस्था में होना चाहिये, आप पर किसी का असर नहीं होना चाहिये। कुछ ध्यान कीजिये और अपने आपको स्पष्टता की अवस्था में ले आईये। उस स्पष्टता में देखिये कि आपकी ज़रूरतें वास्तव में  कितनी मज़बूत हैं?

अगर आपको लगता है कि शादी करने की ज़रूरत नहीं है, और आप एक बार ये फैसला कर लेते हैं तो फिर, बार बार न सोचें। जब एक बार, एक तरफ जाने का फैसला कर लें तो फिर दूसरी तरफ न देखें। आपको इनमें से सिर्फ एक ही चीज़ करनी है। अगर आप बीच में ही लटकते रहे तो हमेशा ही उलझन की अवस्था में बने रहेंगे। "सबसे अच्छी चीज़ क्या है"? कुछ भी सबसे अच्छा, सर्वश्रेष्ठ नहीं होता। अपना जीवन आपको इस तरह से जीना चाहिये कि आप जो कुछ भी कर रहे हैं, वो पूरी तरह से करें। अगर आप में ये गुण है तो आप जो कुछ भी करते हैं, वही सबसे अच्छा है।

शादी की व्यवस्था

प्रश्नकर्ता: आजकल बहुत से युवा शादी करना नहीं चाहते और जो कर लेते हैं, उनके तलाक हो रहे हैं। सदगुरु, क्या आप इस स्थिति पर प्रकाश डालना चाहेंगे?

सदगुरु: शादी का एक पहलू ये है कि हरेक मनुष्य की जो सबसे मूल ज़रूरतें हैं, उनको एक खास तरह की पवित्रता प्रदान की जाये। स्थिरता, सुंदरता और एक खास तरह से बनायी हुई व्यवस्था शादी की वजह से आती हैं क्योंकि किसी पुरुष और स्त्री को एक नये, ताजे जीवन को संसार में स्वाभाविक रूप से लाना है।

मनुष्य जो संभावनायें ले कर जन्मता है उनके कारण मनुष्य का बच्चा कुछ इस तरह का होता है कि, किसी भी दूसरे प्राणी के बच्चे की तुलना में, वो सबसे ज्यादा असहाय जीव होता है और उसको सबसे ज्यादा सहारों की, सहायता की ज़रूरत होती है। आप किसी कुत्ते के बच्चे को गली रास्ते पर छोड़ दें तो भी, अगर उसे बस खाने को मिलता रहे तो वो आराम से बड़ा हो कर एक बढ़िया कुत्ता बन जायेगा। मनुष्य के बच्चे के साथ ऐसा नहीं है। उसे सिर्फ शारीरिक सहारा ही नहीं चाहिये पर बहुत तरह के सहारे चाहियें और, सबसे ज्यादा, उसे एक स्थिर वातावरण की ज़रूरत होती है। आप जब 3 -4 साल की उम्र के थे तब आप शत प्रतिशत शादी के पक्ष में थे, अपने माता पिता की शादी के पक्ष में। और, जब आप 40 - 50 के हो गये तो आप फिर से शत प्रतिशत शादी के पक्ष में हैं। सिर्फ, 18 से 35 की उम्र में ही आप शादी की पूरी व्यवस्था पर सवाल उठा रहे थे।

जब आपका भौतिक शरीर बहुत शक्तिशाली है, सब पर हावी है, तब आप बस शरीर को ही समर्पित रहते हैं और हर संगठन, संस्था, व्यवस्था पर सवाल उठाते हैं। ये हार्मोन्स की ताकत से मिली हुई आज़ादी है। आपकी बुद्धि पर हार्मोन्स का कब्ज़ा है तो आप हर चीज़ की मूल बातों पर ही सवाल उठाते हैं। मैं ये नहीं कह रहा कि इसके लिये शादी ही एक रास्ता है, पर क्या आपके पास इससे बेहतर कोई विकल्प है? हमें अब तक कोई बेहतर विकल्प नहीं मिला है क्योंकि बच्चे के लिये स्थिरता का वातावरण बहुत ज्यादा जरूरी है।

शादी का मतलब है कि आप        जागरूकता के साथ चुनाव करें

सब के लिये ये न तो अनिवार्य है न ज़रूरी के वे शादी करें और बच्चे पैदा करें। हाँ, अगर मनुष्य जाति खत्म होने के कगार पर होती तो हम हरेक को शादी करने और बच्चे पैदा करने की सलाह देते पर यहाँ तो मनुष्यों की आबादी पहले से ही विस्फोटक ढंग से बढ़ रही है। आज तो ऐसा है कि अगर अगर आप बच्चे पैदा नहीं कर रहे, तो मनुष्य जाति पर उपकार ही कर रहे हैं।

पर, अगर आप शादी करते हैं और, खास तौर पर, बच्चे भी पैदा करते हैं तो ये एक 20 साल का काम है, वो भी अगर बच्चे ठीक ढंग से बढ़ते, पढ़ते और अच्छा काम करते हों। अगर वे ठीक नहीं हैं तो फिर ये आपके लिये जीवन भर का काम हो जाता है। अगर आप ये सब करना चाहते हैं तो कम से कम 20 साल तक एक स्थिर वातावरण बनाने के लिये आपको प्रतिबद्ध होना पड़ेगा नहीं तो आपको ऐसे मामलों में नहीं पड़ना चाहिये कि आप उन्हें बीच में ही छोड़ दें और चलते बनें।

एक बात और, आपको एक ही साँस में कभी शादी और तलाक की बात इस तरह नहीं करनी चाहिये जैसे कि ये दोनों एक साथ ही आते हों। थोड़े समय पहले तक भारत में कोई तलाक की बात नहीं करता था। अगर ऐसा कुछ हो जाये कि दो लोगों के बीच कोई बात बिल्कुल ही गलत हो जाती है और उसे ठीक करने का कोई रास्ता नहीं बचता और उन्हें अलग होना ही पड़ता है तो ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होता है पर ऐसा होता है। लेकिन, आपको शादी के साथ ही इसकी योजना नहीं बनानी चाहिये।

शादीशुदा जीवन चलता रहे, इसके लिये क्या करें?

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प्रश्नकर्ता: मैं जीवन में साथी के रूप में, शादी के लिये सही व्यक्ति का चयन कैसे करूँ?

सदगुरु: एकदम सही साथी पाने की कोशिश करने का मतलब है कि आप किसी असंभव चीज़ को पाना चाहते हैं। शादी बहुत झंझट और गड़बड़ वाली बात क्यों होती है, इसका एक कारण ये है कि आपको इस रिश्ते में बहुत सारी चीजें साझा करनी होती हैं। समस्या न तो शादी है, न ही ये पुरुष या स्त्री के बारे में है और न ही पति या पत्नी के बारे में। किसी भी परिस्थिति में जहाँ आपको दूसरे लोगों के साथ काफी कुछ साझा करने की मजबूरी आती है, आपको ऐसी ही समस्यायें मिलेंगी।

शादी में, या साथ साथ रहने में, आपको वही जगह, वही सब कुछ साझा करना पड़ता है। हर दिन, किसी न किसी तरह से आप एक दूसरे के पैर पर पैर देते रहते हैं। दूसरे रिश्तों में अगर कोई सीमाओं को पार करता है तो आप एक दूरी बना सकते हैं पर यहाँ आपके पास कोई विकल्प नहीं है। जितनी ज्यादा एक दूसरे के साथ नज़दीकी होगी, उतनी ही घुसपैठ होगी और टकराव बढ़ेगा ही।

ऐसे बहुत से दम्पत्ति हैं जो बहुत सुंदर ढंग से एक साथ रहते हैं, एक दूसरे को गहराई से प्यार करते हैं और जो एक दूसरे के लिये अद्भुत साथी हैं। पर उसी समय, शादी का ये रिश्ता एकदम खराब, गंदा भी हो सकता है। एक पहलू ये है कि बंद दरवाजों के पीछे क्या खराब हो रहा है, ये सामान्य रूप से दूसरे लोगों को पता नहीं चलता। अगर रास्ते में कोई आप से टकरा जाये, आपके पैर पर पैर रख दे तो आप अलग ढंग से प्रतिक्रिया देते हैं क्योंकि हर कोई देख रहा होता है। पर इस रिश्ते में कोई और नहीं देख रहा है तो कुछ भी हो सकता है।

शादीशुदा जीवन को सफल बनाने के लिये एकदम सही व्यक्ति ज़रूरी नहीं है। इस धरती पर एकदम सही व्यक्ति कोई है ही नहीं। आपके लिये जो ज़रूरी है वो है सम्पूर्ण एकनिष्ठा,पूरी ईमानदारी। चाहे कोई देख रहा है या नहीं, आपको एक ही तरह से व्यवहार करना चाहिये। आप जो भी हैं, वो इसके हिसाब से बदलना नहीं चाहिये कि आप कहाँ हैं और किसके साथ हैं? जब, आप, अपने होने का, व्यवहार करने का तरीका तय कर लेते हैं, हमेशा वैसे ही रहते हैं तो दूसरे व्यक्ति के साथ आपका व्यवहार आनंदमय ही होगा। एक दूसरा पहलू ये है कि अगर आप दोनों एक दूसरे से कुछ पाने की कोशिश करते हैं और आप दोनों को  वो नहीं मिलता, जो आप या वो चाहते हैं, तो लगातार ही टकराव, संघर्ष बना रहेगा।

एक बात जो याद रखने जैसी है, वो ये है कि आप दूसरे पर कोई दया करने के लिये शादी नहीं कर रहे हैं। आप शादी इसलिये कर रहे हैं क्योंकि आपकी ज़रूरतें हैं। अगर दूसरा व्यक्ति आपकी ज़रूरतें पूरी कर रहा है और आप कृतज्ञता से जी रहे हैं तो ज्यादा टकराव की स्थिति नहीं बनेगी। किसी आदर्श स्त्री या आदर्श पुरुष की तलाश न करें, ऐसा कोई नहीं होता। अगर आप ये समझते हैं कि आप अपनी जरूरतों के लिये साथी चाहते हैं तो ऐसा व्यक्ति तलाशिये जो साधारण रूप से आपकी ज़रूरतों के लिये ठीक हो। अगर आप एक दूसरे को स्वीकार कर लेते हैं, आप दोनों को एक दूसरे के लिये परवाह, सम्मान, प्यार, और समावेश का भाव है और आप एक दूसरे की जिम्मेदारी लेते हैं तो ये एक सुंदर रिश्ता हो सकता है।

शादी की एक पवित्र विधि - भूत शुद्धि विवाह

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प्रश्नकर्ता: हाल ही में, आपने एक विवाह प्रक्रिया शुरू की है और मैं जानना चाहता हूँ कि ये प्रक्रिया नव दंपत्ति को और इसमें भाग लेने वाले सभी लोगों को कैसे बेहतर बनाती है? उनके अनुभव क्या हैं और वे किस तरह इसका फायदा ले सकते हैं?

सदगुरु: मेरा ये मानना है कि किसी भी मानवीय गतिविधि में निपुणता, दक्षता होनी चाहिये। जब किसी ने मुझसे ये कहा कि वे दोनों शादी करना चाहते हैं तो मैंने सोचा कि ये प्रक्रिया मुझे ज्यादा निपुणता से करानी चाहिये। लोग ऐसे ही एक दूसरे से बंध जाते हैं पर वो टिकता नहीं है। अगर, आपका बंधने का विचार नहीं है तो अलग बात है, आपकी बात आप जानें। पर, जब आप बंधने की इच्छा रखते हैं तो आपको ये सीखना चाहिये कि अच्छी तरह से, कुशलता से कैसे बंधें? विवाह(शादी की ईशा प्रक्रिया) वही है, बंधने का एक निपुण तरीका!

फर्नीचर में लकड़ी के अलग अलग टुकड़ों को आपस में जोड़ा जाता है। स्क्रू से आप लकड़ी के दो टुकड़ों को आपस में निपुणता से जोड़ सकते हैं। स्क्रू इस्तेमाल करने का फायदा ये है कि आप उसे वापस निकाल भी सकते हैं। अगर आप कील का उपयोग करेंगे तो आप उसे आसानी से निकाल नहीं पायेंगे। एक बार जब आप कील ठोंक देते हैं तो उसे निकालने के लिये, सब कुछ तोड़ना ही पड़ता है।

एक बार, जब मैं कुछ मकान बनते हुए देख रहा था तो मुझे एक बात से अचरज हुआ। सारे मकान में बस कीलें लगायी जा रहीं थीं। अगर उन्होंने स्क्रू का इस्तेमाल किया होता तो शायद हज़ार कीलों का काम 50 स्क्रू से ही हो जाता, बस इंजीनियरिंग थोड़ी ज्यादा करनी पड़ती।

भारत में अगर किसी पारंपरिक बढ़ई ने इस तरह से कीलों का इस्तेमाल किया तो उसे काम से हटा दिया जायेगा। भारत के बढ़ई काम में पारंपरिक रूप से लकड़ी के टुकड़ों का एक खास तरीके से इस्तेमाल होता था। इससे, वे हमेशा के लिये नहीं जुड़ जाते थे - अगर आपकी इच्छा हो तो आप उन्हें निकाल सकते थे - पर उन्हें निकालने के लिये भी खास तरह की कुशलता और कोशिशों की ज़रूरत होती थी। तो, इधर, पूर्व की तरफ(भारत में) उन्होंने इस कला पर महारत हासिल की थी। सब तरह के जोड़ ऐसे ही होने चाहियें। जोड़ने की प्रक्रिया एकदम सही, तेज होनी चाहिये पर अगर, किन्हीं बाहरी कारणों से इन्हें खोलना पड़े तो आप इन्हें कुछ खास कोशिशों से खोल सकें, ऐसे जोड़ होने चाहियें – वरना, इसका मतलब यही होगा कि हम जिस सामग्री का उपयोग कर रहे हैं, उसके बारे में हमें जरा भी परवाह नहीं है।

ये मनुष्यों पर भी लागू होता है। जब हम किसी को किसी से जोड़ें तो इस तरह से जोड़ना चाहिये कि ये बिल्कुल स्थायी, स्थिर हो। पर, अगर किसी बाहरी वजह से - जैसे कि, अगर एक की मौत हो जाये तो दूसरा भी तुरंत ही उसके पीछे मर ना जाये, क्योंकि अगर आप उन्हें बहुत ही पक्के ढंग से जोड़ते हैं तो ऐसा हो सकता है।

पुराने समय में, बहुत से लोग ऐसी इच्छा जताते थे, "अगर मेरा जीवन साथी मर जाये तो मैं भी मर जाऊँ"। वे दिन अब बीत चुके। आजकल तो ये स्थिति है कि अगर आपने ऐसा कुछ किया, जो आपके साथी को पसंद नहीं तो वो आपको छोड़ कर चल देगा। तो, आज की इस दुनिया में लोगों को इतना पक्का नहीं बाँधना चाहिये। ये जोड़ इतना तो मजबूत हो कि कल सुबह अगर टूथपेस्ट को ले कर झगड़ा हो जाये तो भी जोड़ टिका रहे। पर, अगर कोई बाहरी चीज़ हो जाती है, तो बस थोड़ी कोशिश करके आप जोड़ को खत्म कर सकें। पर जब आपने कुछ जोड़ दिया है और आप उस जोड़ को खोलना चाहें, तो अगर ये जोड़ सही ढंग से नहीं हुआ है, तो खोलने की ये प्रक्रिया हमसे अपनी कीमत वसूल कर लेगी। इसका असर बहुत ज्यादा होगा। ये चाहे कुछ भी हो, भौतिक हो,  सामग्री हो या मनुष्य हो, खोलने की प्रक्रिया महंगी पड़ेगी।

अगर आप इस फर्नीचर को खोलना चाहें - तो अंदर कुछ ऐसे छेद या गड्ढे रह जायेंगे, जिन्हें ढँकना या भरना आसान नहीं होगा, आपको बहुत ज्यादा कोशिशें करनी होंगी। ऐसा ही मनुष्यों के साथ भी है। मैं जानता हूँ कि आजकल एक सूत्र बहुत प्रचलित है, "मैं आगे बढ़ गया/गयी हूँ"! पर, इस आगे बढ़ जाने का मतलब ये नहीं होता कि वे मुक्त हो गये हैं और इस सब से पार चले गये हैं। इस आगे बढ़ जाने का वास्तव में मतलब ये होता है कि वे एक गड्ढे में से निकल कर दूसरे गड्ढे में पहुँच गये हैं। तो, आप भले ये कहें कि आप आगे बढ़ गये हैं पर सही बात ये है कि आप किसी और, कुछ ज्यादा गहरे गड्ढे में गये हैं जो आपको कभी कभी परेशान करेंगे।

आप शायद इसे किसी तरह संभाल लें - शाम को शराब, सुबह इतनी देर से उठना कि ऑफिस जाने में बस 5 मिनिट का ही समय बाकी हो और फिर ऑफिस पहुँच कर सारा समय व्यस्त रहने, बड़बड़ाने और शिकायतें करने में लगाना - बहुत से लोग इस तरह जीवन चलाते हैं। अगर, आप उन्हें तीन दिन एक जगह बैठा कर रखें, जहाँ उनके पास करने के लिये कुछ भी न हो - तो आप देखेंगे कि उन अंदर के घावों के कारण वे पागल हो जायेंगे।

किसी गड्ढे को, किसी ज़ख्म को अनदेखा करना, और, उन्हें भरना, ये एकदम अलग अलग बातें हैं। इनको भरना उतना आसान नहीं है। ये उस दीमक की तरह हैं जो आपके फर्नीचर में लगी है और फर्नीचर को बस पेंट कर के आप सोचते हैं कि सब ठीक हो गया। पर, आपको उसे रोज ही देखना पड़ेगा, टटोलना होगा नहीं तो एक दिन ऐसा आयेगा जब उसको छूने पर आपके हाथ में बस पेंट रह जायेगा क्योंकि दीमक पेंट को नहीं खाती, वो सिर्फ जैविक पदार्थ, लकड़ी, को खाती है। वो आपकी तरह नहीं है जो रसायन भरा खाना भी खा जाये। वो बस सफाई से सारी लकड़ी खा जाती है और जब आप अपनी ऊँगली घुसाते हैं तो ये एकदम अंदर चली जाती है क्योंकि वहाँ बस पेंट है, कोई लकड़ी बची ही नहीं।

शादी का मकसद क्या है?

किसी भी चीज़ को जोड़ने का काम अच्छी तरह से होना चाहिये, नहीं तो उसका कोई मतलब ही नहीं है। हम इसे ऐसे ढंग से भी जोड़ सकते हैं कि अगर एक मर जाता है तो दूसरा भी मर जाये, अगर एक को आत्मज्ञान हो जाता है तो दूसरे को भी हो जाये। इस तरह बांधने में कुछ सकारात्मक बात भी है, पर, औसतन, जितने लोग बीमार होते हैं, पागल हो जाते हैं, मर जाते हैं, उनकी संख्या उन लोगों से बहुत ज्यादा है जिन्हें आत्मज्ञान होता है। तो हम इस तरह बाँधने का खतरा नहीं उठा सकते।

कुछ खास तरह की कोशिशों से और जीवन के लिये एक खास कीमत चुका कर, बंधन को खोल देना संभव है, पर इसकी कीमत तो होगी ही। विवाह(शादी की ईशा प्रक्रिया), ये दो जीवों को बाँधने की ऐसी जैविक प्रक्रिया है, जिसमें उनका कम से कम एक हिस्सा है, जिसमें वे जान सकते हैं कि कौनसा हिस्सा किसका है, और ये अच्छा है, क्योंकि उन्हें मिलने का एक खास अनुभव होता है। हम आशा करते हैं कि वे (अस्तित्व के साथ के) अपने ज्यादा बड़े मिलन के लिये एक आगे बढ़ने का साधन बनायेंगे। वे ऐसा करते हैं या नहीं, ये दूसरी बात है।

जो लोग ये प्रक्रिया कराते हैं, उनके लिये ये बहुत सुंदर होगा क्योंकि उनके जीवन के लिये ये बहुत बड़ी साधना हो सकती है कि आप दो जीवों को साथ में लाते हैं और उनको एक होने का अनुभव कराते हैं। इसमें एक खास सुंदरता है और अपने जीवन के लिये एक खास योगदान भी।

उनके लिये भी, जो इसे सिर्फ देखते हैं, हम इसे अभी जिस तरह से कर रहे हैं, उससे भी ज्यादा मजबूती से कर सकते हैं। लेकिन, अभी हम वहाँ तक नहीं जा रहे हैं क्योंकि मौत, बीमारियाँ और तलाक होने की दर बहुत ज्यादा हैं। हम इसे और ज्यादा मजबूती से बाँध सकते हैं या इसे और भी ज्यादा व्यापक बना सकते हैं - पर हमें हमेशा सामाजिक वास्तविकताओं का ध्यान रखना पड़ता है। पर, फिर भी, चाहे जितने तलाक हों, चाहे जितने लोग ये मानते हों कि शादी की भी एक समय सीमा होती है, जब कोई ऐसा मिलन होता है जो शरीर और मानसिक साथ से परे हो तो उसमें, उसके चारों ओर, एक सुंदर ऊर्जा होती है। जो लोग देखने आये हैं, उन्हें इस प्रक्रिया से बहने वाले शहद की कुछ बूँदें चाटने को मिल जायेंगी( यानी, इसकी मूल सुंदरता का कुछ अंश उन्हें भी अपने आप ही मिलेगा)। जैसे, भाव स्पंदन कार्यक्रम में अगर कुछ लोगों को कोई अनुभव न भी हुआ हो, तब भी, वहाँ जो एक खास अवस्था में थे, उनको देखने से भी बहुत फायदा होता है - सिर्फ इसलिये कि आपने किसी और को मिलन में देखा। आपको नहीं मालूम कि वे किसके साथ एक हो रहे थे, पर उन्होंने अपनी सीमाओं को फिर से बनाया होगा - जिससे वे थोड़ी और बड़ी हो गयी होंगीं। तो, जब विवाह की प्रक्रिया हो रही हो, तब उसे होते हुए देखने वालों को भी बहुत फायदा होता है।

ऐसी ही चीजें विवाह में भी हो रही हैं, पर एक छोटे स्तर पर। हम इसे बड़े स्तर की बना सकते हैं पर फिर कई तरह के परिणाम होंगे जो हमें देखने को मिलेंगे क्योंकि लोगों को 20, 30, 50..... साल तक रहना है। आज की दुनिया में जहाँ लोग माइक्रो सेकंड भी गिन रहे हैं, पचास साल तो जेल की सज़ा जैसा ही लगेगा। वे इसके बारे में सोच भी नहीं सकते। बहुत सारे लोग, ये कहते हुए, हे, भगवान, सारी जिंदगी!!",  शादी करने से पीछे हट जायेंगें। पुरानी पीढ़ियाँ ये बहुत आसानी से कर लेती थीं, "जब तक मौत हमें जुदा न करे.....! पर, आजकल, मैं नहीं समझता कि कोई पादरी ऐसा कहता होगा। वो ऐसा कहने की हिम्मत भी नहीं कर सकता।

सामाजिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए, हमनें "विवाह को कुछ हद तक आंशिक नाप में रखा है - समाज जो कुछ अपेक्षा रखता है, उससे बस एक कदम आगे। अगर आप उससे कुछ ज्यादा करते हैं तो ये कुछ अच्छा नहीं होगा।

क्या शादी में जन्म पत्रिका मिलाना   महत्वपूर्ण है?

प्रश्नकर्ता: मैं ज्योतिष के बारे में सच जानना चाहता हूँ। वे कहते हैं कि ये विज्ञान है, पर जब शादी के लिये जन्म पत्रिकायें मिलायी जाती हैं या जब किसी मंगली लड़की की पहले एक पेड़ के साथ शादी करायी जाती है, तो मुझे कुछ अजीब लगता है।

सदगुरु,: जब जन्म पत्रिकायें मिलायी जाती हैं तो शायद ग्रहों की अनुकूलता देखी जा सकती है पर आप इन दो बेवकूफों को कैसे एक दूसरे के अनुकूल बनायेंगे? ये संभव नहीं है। कोई भी इन दोनों को अनुकूल नहीं बना सकता। वे एक दूसरे की जिम्मेदारी लेते हैं, एक दूसरे के साथ भागीदारी की समझ दिखाते हैं और एक दूसरे में अपने जीवन का निवेश करते हैं, सिर्फ तभी कुछ अद्भुत हो सकता है। नहीं तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप उन्हें किस तरह से मिलाते हैं! ये कुछ भी काम नहीं करने वाला! इसीलिये, ज्यादातर लोगों के लिये, सभी प्रेम प्रकरण और शादियाँ कुछ ही समय तक ठीक रहते हैं। उसके बाद में, ये एक बड़ी चिंता हो जाती है या लगातार चलने वाला टकराव बन जाता है क्योंकि लोग बस एक दूसरे को मिलाने की कोशिश कर रहे हैं। लोगों को आप मिला नहीं सकते। कोई भी दो मनुष्य एक जैसे नहीं होते। ये उस तरह से काम नहीं करता। अगर आप दूसरे व्यक्ति की खुशहाली को अपनी खुशहाली से ज्यादा महत्व देंगे तो सब कुछ ठीक हो जायेगा।

अगर आपका जीवन जीने का तरीका यही है, आप दूसरे से अपनी खुशी पाना चाहते हैं, तो आप देखेंगे कि कुछ समय बाद रिश्ते में कड़वाहट आयेगी। अगर आपका जीवन ऐसा है कि आप अपनी खुशी को साझा करते हैं, तो सब कुछ सही होगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके ग्रह क्या कहते हैं। ग्रह जो चाहते हैं वो कहेंगे पर जब आप मनुष्य के रूप में आये हैं तो आपको ये जीवन अच्छा बनाना चाहिये। इस धरती पर मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो अपने जीवन की संरचना बना सकता है। अगर आप अपनी इस योग्यता को छोड़ कर ग्रहों और सितारों जैसी निर्जीव चीजों को अपना भविष्य तय करने देंगे तो जीने का ये तरीका दुखद होगा। कृपया अपना जीवन अपने हाथों में लीजिये।

ये कितनी बेवकूफी भरी बात है कि कोई तीसरा आदमी, जिसे आप जानते भी नहीं हैं, आपको ये बताये कि आप अपने पति या अपनी पत्नी के साथ खुशी से रह सकेंगे या नहीं? ये बात ही बेहूदी है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस तरह के बेवकूफ के साथ आप शादी कर रहे/ रहीं हैं, आप सिर्फ ये जिम्मेदारी लीजिये कि आप अच्छी तरह से रहेंगे। यही वो तरीका है, जिससे आप अच्छी तरह ही रहेंगे।

सफल शादी के 5 सूत्र

#1 प्यार से भरे दो दिल.

अंग्रेज़ी कहावत, "फॉलिंग इन लव"(प्यार में पड़ना) बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि आप प्यार में ऊपर नहीं उठते, प्यार में आप उड़ते भी नहीं हैं, न ही चलते या खड़े रहते हैं। आप बस प्यार में गिर जाते हैं, क्योंकि आप जो कुछ भी हैं, उसका कुछ भाग तो आपको छोड़ना ही होगा। मूल रूप से इसका मतलब ये है कि आपके लिये, खुद से ज्यादा, कोई और महत्वपूर्ण हो गया है। सिर्फ अगर आप अपने बारे में ज्यादा न सोचें तो आप प्यार में पड़ ही जायेंगे। आप जिसे 'मैं खुद' समझते हैं, उसके होने का भाव जब कम या खत्म हो जाता है तो आप में प्यार का एक गहरा अहसास हो ही जायेगा।

#2 समझ की एक उदार मात्रा बढ़ाईये

किसी के साथ रिश्ता जितना ज्यादा नज़दीकी होता है, आपको उसे समझने की उतनी ही ज्यादा कोशिश करनी चाहिये। जब आप किसी को ज्यादा बेहतर समझेंगे तो वो आपके ज्यादा नज़दीक होगा और ज्यादा प्रिय भी। अगर वो आपको ज्यादा अच्छी तरह समझे तो उसको रिश्ते की नजदीकी का आनंद मिलेगा और अगर आप उसे ज्यादा अच्छी तरह समझे तो इसका आनंद आपको मिलेगा। अगर आपकी उम्मीद ये है कि दूसरा आपको समझे और आपकी हर इच्छा पूरी करे, जब कि आप उसकी सीमितताओं, संभावनाओं, ज़रूरतों और योग्यताओं को नहीं समझते तो फिर संघर्ष ही होगा।

हरेक में कुछ सकारात्मक और कुछ नकारात्मक पहलू होते हैं। अगर आप ये सब अच्छी तरह समझ लें, तो आप रिश्ते को वैसा बना लेंगे जैसा आप चाहते हैं। अगर आप इसे उसकी समझ पर छोड़ देंगे तो ये एक संयोगवश होने वाली बात बन जायेगी। अगर वो बहुत समझदार, उदार है तो चीजें आपके लिये सही होंगी, वरना रिश्ता टूट जायेगा। ऐसा नहीं है कि दूसरे व्यक्ति को बिल्कुल ही, कुछ भी समझ नहीं है। अपनी समझ से आप ऐसी परिस्थितियाँ बना सकते हैं, जहाँ वो आपको ज्यादा बेहतर समझ सके।

#3 इस पर थोड़ा काम करें

शादी अपने आप में कोई एक ऐसा सम्पूर्ण काम नहीं है जो आप एक बार में कर लेते हैं और फिर उसे भूल जाते हैं। ये एक सक्रिय भागीदारी है। दो अलग अलग लोग, एक ही मकसद के लिये, साथ आने का तय करते हैं, एक दूसरे के साथ में एक जीवन बनाते, बढ़ाते हैं, आनंदपूर्वक रहते हैं और अपनी खुशहाली को कई गुना बढ़ाते हैं। दो लोग अपने जीवन को एक बना लें, इसमें एक खास सुंदरता है।

भारतीय संस्कृति में, शादी की रस्म को साल में एक बार दोहराया जाता था जिससे दोनों को याद रहे कि वे क्यों साथ साथ आये? इस तरह, उस दिन, फिर से, एक नयी शादी होती थी नहीं तो आपको लगेगा कि आप एक ही शादी में जीवन भर के लिये फँस गये हैं। जागरुकतापूर्वक आप इसमें आये हैं तो आपको इसे जागरूकतापूर्वक ही निभाना भी चाहिये।

#4 कुछ आनंद के साथ इसे तरोताज़ा रखें

अगर रिश्तों को वाकई सुंदर रहना है, तो ये बहुत महत्वपूर्ण है कि मनुष्य दूसरे की ओर देखने से पहले, खुद अपने अंदर मुड़ कर, अपने आपको गहराई से देखे। अगर आप अपने आप में ही आनंद का स्रोत बनते हैं और अपने रिश्ते में आप अपना आनंद साझा करने में यकीन रखते हैं, तो किसी के भी साथ आपके रिश्ते अद्भुत होंगे। क्या दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति हो सकता है - जिसे आपके साथ कोई समस्या हो, जब आप अपना आनंद उसके साथ बाँटते हों? नहीं! अगर आप दूसरे व्यक्ति के साथ होने की गहराई का अनुभव करना चाहते हैं, तो आपकी शादीशुदा जिंदगी कभी खुद आपके बारे में नहीं होनी चाहिये। ये हमेशा दूसरे व्यक्ति के बारे में होनी चाहिये। अगर आप दोनों इस तरह की सोच रखते हैं, तो आपकी शादी महज़ एक व्यवस्था बन कर नहीं रह जायेगी बल्कि ये एक वास्तविक मिलन की बात होगी।

#5 एक दूसरे को प्रदान करें

अगर आपकी शादी बस ऐसी उम्मीदों का गट्ठर है - कि आप कैसे दूसरे से अपनी खुशियाँ खींच लें और वो आपके लिये सब कुछ स्वर्ग जैसा रखे तो आपके हाथ निराशा ही लगेगी। लोग ऐसा कहते हैं कि शादियाँ स्वर्ग में तय होती हैं। वे ऐसा इसलिये कहते हैं क्योंकि ज्यादातर लोग अपनी शादी को नर्क बना लेते हैं। अगर आपका रिश्ता किसी से कुछ हासिल कर लेने भर का ही है, तो आप कितना हासिल कर पाते हैं, इससे फर्क नहीं पड़ता पर आपकी शादीशुदा जिंदगी में लगातार मुसीबतें आती रहेंगी। पर, अगर आपका रिश्ता दूसरे व्यक्ति को सब कुछ प्रदान करने की बात है, तो सब कुछ अद्भुत रहेगा।

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